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माधुरी के पति जब दोस्तों के साथ गोवा ट्रिप का प्लान बना रहे थे तो माधुरी ने कहा – आप मुझे पिछले पाँच साल से कहीं घुमाने नहीं ले गये हैं। पतिदेव बोले – अपना चेहरा देखो, मैं अपने दोस्तों से कैसे तुम्हारा परिचय करवाऊँगा? मुझे तुम्हारे साथ चलने में शर्म आती है।
माधुरी को दुसरी प्रेगनेन्सी के दौरान उसके चेहरे पर भूरे, कत्थई मटमैले से नक्शे जैसे धब्बे बन गये थे जो हजारों क्रीमें लगाने के बाद भी नहीं जा रहे थे, उल्टे क्रीमों के साइड – इप्फेक्ट्स के कारण त्वचा धूप में निकलते ही लाल हो जाती थी और चेहरे पर चितकबरे धब्बों के साथ – साथ छोटे – छोटे सफ़ेद बिन्दी जैसे निशान भी बन गये थे। त्वचा बहुत पतली हो जाने के कारण अन्दर की नसें (शिरायें) भी झलकने लगी थीं।
निराशा और अवसाद में माधुरी को रात में सोने के लिये नींद की गोलियों का सहारा लेना पड़ता था और अच्छी नींद न मिलने से आँखों के नीचे काले घेरे भी बन गये थे। माधुरी चेहरे की चमक के साथ-साथ अपना आत्मविश्वास भी खो बैठी। आत्महत्या जैसे विचारों को सिर्फ ये सोचकर परे ढकेलती थी कि उसके छोटे बच्चों का क्या होगा?
आखिर उसने झाँइयों के विषय में एक लेख पढ़ा जिसमें प्रकाश किरणों और एन्टीऑक्सीडेन्ट्स के माध्यम से झाँइयों में आशाजनक परिणाम के विषय में लिखा था, उत्सुकता वश उसने लेजर चिकित्सक से सलाह ली और तीन महीने में चिकित्सा द्वारा झाँइयों से मुक्ति पायी।
झाँइयों के इलाज में विशेष प्रकार की लेजर किरणों का प्रयोग किया जाता है जिसकी एनर्जी ऊर्जा का सही चुनाव विशेष महत्वपूर्ण होता है। कुशल और अनुभवी लेजर सर्जन से ही इलाज करवाना चाहिये। सही उर्जा न होने पर पहले से ही सेन्सिटिव त्वचा में पोस्ट इन्फ्लेमेटरी हाइपरपिगमेंटेशन जैसे साइड इफेक्ट्स की संभावना रहती है। त्वचा में पिग्मेंटेशन की गहराई (एपीडर्मिस) का भी ख्य़ाल रखाना होता है।
लेजर चिकित्सा में १५ – २० मिनट का समय लगता है, तथा चिकित्सा को १५ दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार अमूमन ४ से ६ बार लेना होता है। चिकित्सा के दौरान धूप से बचाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
लेजर द्वारा झाँइयों और मिलैनिन को शनैः-शनैः समाप्त करने के साथ ही साथ मिलैनिन बनने की प्रवृती को ठीक करना भी नितान्त आवश्यक होता है, वरना पुनः झाइयाँ बनने की सम्भावना बनी रहती है। इसके लिये उच्चकोटि के एनटीऑक्सीडेन्ट, विटामिन सी, विटामिन ई, ओमेगा फैटी एसिड्स का समुचित और लम्बे समय (३ से ६ महीने) तक प्रयोग करना होता है। साथ ही साथ शरीर में होने वाले किसी भी तरह के हार्मोन असंतुलित जैसे – थायरॉइड, पी सी ओ डी आदि की सही जाँच और इलाज भी जरूरी है।
मेडिकल भाषा में मिलाज्म़ा के नाम से जानी जाने वाली ‘झाँइयों’ का सम्बन्ध न केवल त्वचा से होता है वरन् अन्दरूनी अंगों जैसे लिवर एन्जाइम्स और मेटाबोलिक रसायनों और हार्मोंनों से भी होता है, अतः स्वस्थ जीवनशैली और स्वस्थ भोजन भी त्वचा की कांति बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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